Jyotish in Hindi – Part 6

राशियों के बारे में जानकारी – विशेषता

पिछले अंक में हमनें भाव कारकत्‍व के बारे में जाना। हमने यह भी जाना कि कारकात्‍व एवं स्‍वभाव में क्‍या फर्क होता है। इस बार पहले हम राशियों के बारे में जानते हैं। राशियों के स्‍वभाव इस प्रकार हैं-
मेष – पुरुष जाति, चरसंज्ञक, अग्नि तत्व, पूर्व दिशा की मालिक, मस्तक का बोध कराने वाली, पृष्ठोदय, उग्र प्रकृति, लाल-पीले वर्ण वाली, कान्तिहीन, क्षत्रियवर्ण, सभी समान अंग वाली और अल्पसन्तति है। यह पित्त प्रकृतिकारक है। इसका प्राकृतिक स्वभाव साहसी, अभिमानी और मित्रों पर कृपा रखने वाला है। 

वृष – स्त्री राशि, स्थिरसंज्ञक, भूमितत्व, शीतल स्वभाव, कान्ति रहित, दक्षिण दिशा की स्वामिनी, वातप्रकृति, रात्रिबली, चार चरण वाली, श्वेत वर्ण, महाशब्दकारी, विषमोदयी, मध्य सन्तति, शुभकारक, वैश्य वर्ण और शिथिल शरीर है। यह अर्द्धजल राशि कहलाती है। इसका प्राकृतिक स्वभाव स्वार्थी, समझ-बूझकर काम करने वाली और सांसारिक कार्यों में दक्ष होती है। इससे कण्ठ, मुख और कपोलों का विचार किया जाता है। 

मिथुन – पश्चिम दिशा की स्वामिनी, वायुतत्व, तोते के समान हरित वर्ण वाली, पुरुष राशि, द्विस्वभाव, विषमोदयी, उष्ण, शूद्रवर्ण, महाशब्दकारी, चिकनी, दिनबली, मध्य सन्तति और शिथिल शरीर है। इसका प्राकृतिक स्वभाव विद्याध्ययनी और शिल्पी है। इससे हाथ, शरीर के कंधों और बाहुओं का विचार किया जाता है।

 कर्क – चर, स्त्री जाति, सौम्य और कफ प्रकृति, जलचारी, समोदयी, रात्रिबली, उत्तर दिशा की स्वामिनी, रक्त-धवल मिश्रित वर्ण, बहुचरण एवं संतान वाली है। इसका प्राकृतिक स्वभाव सांसारिक उन्नति में प्रयत्नशीलता, लज्जा, और कार्यस्थैर्य है। इससे पेट, वक्षःस्थल और गुर्दे का विचार किया जाता है। 

सिंह – पुरुष जाति, स्थिरसंज्ञक, अग्नितत्व, दिनबली, पित्त प्रकृति, पीत वर्ण, उष्ण स्वभाव, पूर्व दिशा की स्वामिनी, पुष्ट शरीर, क्षत्रिय वर्ण, अल्पसन्तति, भ्रमणप्रिय और निर्जल राशि है। इसका प्राकृतिक स्वरूप मेष राशि जैसा है, पर तो भी इसमें स्वातन्त्र्य प्रेम और उदारता विशेष रूप से विद्यमान है। इससे हृदय का विचार किया जाता है। 

कन्या – पिंगल वर्ण, स्त्रीजाति, द्विस्वभाव, दक्षिण दिशा की स्वामिनी, रात्रिबली, वायु और शीत प्रकृति, पृथ्वीतत्व और अल्पसन्तान वाली है। इसका प्राकृतिक स्वभाव मिथुन जैसा है, पर विशेषता इतनी है कि अपनी उन्नति और मान पर पूर्ण ध्यान रखने की यह कोशिश करती है। इससे पेट का विचार किया जाता है।
तुला – पुरुष जाति, चरसंज्ञक, वायुतत्व, पश्चिम दिशा की स्वामिनी, अल्पसंतान वाली, श्यामवर्ण शीर्षोदयी, शूद्रसंज्ञक, दिनबली, क्रूर स्वभाव और पाद जल राशि है। इसका प्राकृतिक स्वभाव विचारशील, ज्ञानप्रिय, कार्य-सम्पादक और राजनीतिज्ञ है। इससे नाभि के नीचे के अंगों का विचार किया जाता है।

वृश्चिक – स्थिरसंज्ञक, शुभ्रवर्ण, स्त्रीजाति, जलतत्व, उत्तर दिशा की स्वामिनी, रात्रिबली, कफ प्रकृति, बहुसन्तति, ब्राह्मण वर्ण और अर्द्ध जल राशि है। इसका प्राकृतिक स्वभाव दम्भी, हठी, दृढ़प्रतिज्ञ, स्पष्टवादी और निर्मल है। इससे शरीर के क़द और जननेन्द्रियों का विचार किया जाता है।

धनु – पुरुष जाति, कांचन वर्ण, द्विस्वभाव, क्रूरसंज्ञक, पित्त प्रकृति, दिनबली, पूर्व दिशा की स्वामिनी, दृढ़ शरीर, अग्नि तत्व, क्षत्रिय वर्ण, अल्पसन्तति और अर्द्ध जल राशि है। इसका प्राकृतिक स्वभाव अधिकारप्रिय, करुणामय और मर्यादा का इच्छुक है। इससे पैरों की सन्धि और जंघाओं का विचार किया जाता है।

मकर – चरसंज्ञक, स्त्री जाति, पृथ्वीतत्व, वात प्रकृति, पिंगल वर्ण, रात्रिबली, वैश्यवर्ण, शिथिल शरीर और दक्षिण दिशा की स्वामिनी है। इसका प्राकृतिक स्वभाव उच्च दशाभिलाषी है। इससे घुटनों का विचार किया जाता है।

कुम्भ – पुरुष जाति, स्थिरसंज्ञक, वायु तत्व, विचित्र वर्ण, शीर्षोदय, अर्द्धजल, त्रिदोष प्रकृति, दिनबली, पश्चिम दिशा की स्वामिनी, उष्ण स्वभाव, शूद्र वर्ण, क्रूर एवं मध्य संतान वाली है। इसका प्राकृतिक स्वभाव विचारशील, शान्तचित्त, धर्मवीर और नवीन बातों का आविष्कारक है। इससे पेट की भीतरी भागों का विचार किया जाता है।

मीन – द्विस्वभाव, स्त्री जाति, कफ प्रकृति, जलतत्व, रात्रिबली, विप्रवर्ण, उत्तरदिशा की स्वामिनी और पिंगल वर्ण है। इसका प्राकृतिक स्वभाव उत्तम, दयालु और दानशील है। यह सम्पूर्ण जलराशि है। इससे पैरों का विचार किया जाता है।
 राशियों के स्वभाव जानने के बाद हम अब अगली बार ग्रहों के कारकत्व और स्वभाव के बारे में जानेंगे।

Jyotish learn in hindi

Jyotish in Hindi -Part 1Jyotish in Hindi –Part 2Jyotish in Hindi –Part 3Jyotish in Hindi –Part 4
Jyotish in Hindi –Part 5Jyotish in Hindi –Part 6Jyotish in Hindi –Part 7Jyotish in Hindi –Part 8
Jyotish in Hindi –Part 9Jyotish in Hindi –Part 10Jyotish in Hindi –Part 11Jyotish in Hindi –Part 12
Jyotish in Hindi -Part 13Navgrah Ke Upay In HindiLagna